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अरे मन चेतत काहे नाही / बुन्देली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अरे मन चेतत काहे नाहीं
काम क्रोध लोभ मोह में,
खोवत जन्म वृथा ही। अरे मन...
झूठो यह संसार समन सम,
उरझि रहौ ता माही। अरे मन...
रे मूरख सिया राम भजन बिन,
शुभ दिन बीते जाहीं। अरे मन...
राम नाम की सुध न लेत हो,
विष रस चाखन चाही। अरे मन...
अजहूं चेत रहौ मन मेरो,
फिर पीछे पछता ही। अरे मन...
कंचन कुंअरि थकत भई रसना,
बकत-बकत तो पाही। अरे मन...