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"अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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हासिल सिवाये हसरत-ए-हासिल नहीं रहा  
 
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18:44, 13 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़<ref>प्रेम की आकांक्षा की अभिव्यक्ति</ref> के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वो दिल नहीं रहा

जाता हूँ दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती<ref>जीवन की अभिलाषाओं का दाग</ref> लिये हुए
हूँ शमआ़-ए-कुश्ता<ref>बुझा हुआ दीपक</ref> दरख़ुर-ए-महफ़िल<ref>महफिल के योग्य</ref> नहीं रहा

मरने की ऐ दिल और ही तदबीर कर कि मैं
शायाने-दस्त-ओ-खंजर-ए-कातिल<ref>कातिल के हाथों और भुजाओं के द्वारा वध किया जा सकने वाला</ref> नहीं रहा

बर-रू-ए-शश जिहत<ref>धरती और आकाश के मुख पर</ref> दर-ए-आईनाबाज़ है
यां इम्तियाज़-ए-नाकिस-ओ-क़ामिल<ref>पूर्ण तथा अपूर्ण का भेद</ref> नहीं रहा

वा<ref>खोल दिए हैं</ref> कर दिये हैं शौक़ ने बन्द-ए-नक़ाब-ए-हुस्न<ref>सौंदर्य के आवरण के बंधन</ref>
ग़ैर अज़ निगाह अब कोई हाइल नहीं रहा

गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हाए-रोज़गार<ref>दुनिया के अत्याचार का शिकार</ref>
लेकिन तेरे ख़याल से ग़ाफ़िल<ref>अनजान</ref> नहीं रहा

दिल से हवा-ए-किश्त-ए-वफ़ा<ref>प्रेम को निभाने की खेती की कामना</ref> मिट गया कि वां
हासिल सिवाये हसरत-ए-हासिल नहीं रहा

बेदाद-ए-इश्क़<ref>प्रेम का अत्याचार</ref> से नहीं डरता मगर 'असद'
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा

शब्दार्थ
<references/>