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अर्थी भर धरती / राजकिशोर सिंह

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ध्रा पर ध्रते ही ध्ड़
लोग लगते हैं दौड़ने
पैसे के लिए
लोग लगते हैं सोचने
पैसे के लिए
लोग करने लगते बेतहाशा काम
पैसे के लिए
लोग होने लगते हैं बदनाम
पैसे के लिए
चाहता है
जीत लूँ भाई को
जीत लूँ पड़ोसी को
जीत लूँ गाँव को
जीत लूँ ध्रती को
मानो ध्रती रहने के लिए नहीं
जीतने के लिए है
ठांँव के लिए गाँव नहीं
जीतने के लिए है
जीत की लालसा में
चाहता है जीतना मृत्यु को
लेकिन पाता नहीं जीत
अंत में होती है हार
सिकंदर सा व्यवहार

जनमना ऽुले हाथ
मरना ऽुले हाथ
मृत्यु के बाद
मापने पर
दो गज ध्रती
जीत की दो गज ध्रती
सिर से नापो दो गज ध्रती
पैर के नऽ से नापो
दो गज ध्रती
मात्रा दो गज ध्रती
जीत की ध्रती
केवल अरथी भर ध्रती।