Last modified on 8 जनवरी 2021, at 23:42

अर्थ बदल रहे हैं शब्द / सत्यनारायण स्नेही

इस तकनीकी युग में
जब फेसबुक पर मिल रहे हैं
कई तरह के मित्र
लाईक की जा रही है
उनकी तस्वीरे
दिये जा रहे हैं कमैंट
बन रही है दोस्ती की परिभाषाएं
भेजे जा रहे हैं
तत्वपरक संदेश
रची जा रही हैं नई वर्णमाला
शब्द अर्थ बदल रहे हैं।
शब्द जो देते हैं
जीवन को अर्थ
अहसास को ज़ुबान
कविता को आकार
अब मोबाईल स्क्रीन पर
दौड रहे हैं
अब जबकि
मुहावरों की जगह
आ गये हैं चुटकुले
लोकोक्ति की जगह तंत्रोक्ति
अहसास की जगह अविश्वास
कविता
अर्थों में शब्द तलाशती है
अब कोई नहीं फैंकता
शब्द आदमी की तरफ़
नहीं होता धमाका
शब्द और आदमी की
टक्कर से
खुद पहुंचते हैं शब्द
आदमी के पास
अपने अर्थ बदल कर।