भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलगाव / सुधा ओम ढींगरा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साथ-साथ इकठ्ठे चले
दुनिया जीतने हम.

सीढ़ी दर सीढ़ी
चढ़ते गए--
पीछे न मुड़े हम.

बुलंदियां छूने
ऊँचे उठे--
बेखबर उड़ते ही रहे हम.

प्रेम, समझौता भूल
अस्तित्व-व्यक्तित्व से--
टकराते रहे हम.

स्वाभिमान मेरा
अहम् तुम्हारा--
अकड़ी गर्दनों से अड़े रहे हम.

अकाश से तुम
धरती सी मैं--
क्षितिज तलाशते रहे हम.

भोर की लालिमा
साँझ की कालिमा--
डगमग सा जीते रहे हम.

बेतुकी बातों का मुद्दा बना
निस्तेज से प्राणी--
भावनाओं को चोटें पहुँचाते रहे हम.

असमान छूते
नीड़ तलाशते--
चोंच से चोंच लड़ाते रहे हम.

वक्त ने झटका दिया
हाथ छूटा, साथ टूटा--
दिशाओं अलग में चल दिए हम.

मैं कहाँ और
तुम कहाँ चल दिए
कहाँ से क्या हो गये हम.

दुनिया तो दूर, स्वयं को भी
जीतने के काबिल न रहे हम.