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अलग है ढंग मेरी अर्चना का / शिव ओम अम्बर

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अलग है ढंग मेरी अर्चना का,
व्यथा जीना पराई चाहता हूँ।

नहीं मंजूर है खै़रात मुझको,
पसीने की कमाई चाहता हूँ

अमावस ही अमावस है चतुर्दिक्
जुन्हाई ही जुन्हाई चाहता हूँ।

जुटाने में जिन्हें कुल उम्र बीती,
लुटाना पाई-पाई चाहता हूँ।

सजे जिसपे महादेवी की राखी,
निराला-सी कलाई चाहता हूँ।