भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलि रचो छंद / सोहनलाल द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलि रचो छंद
आज कण कण कनक कुंदन,
आज तृण तृण हरित चंदन,
आज क्षण क्षण चरण वंदन
विनय अनुनय लालसा है।
आज वासन्ती उषा है।

अलि रचो छंद
आज आई मधुर बेला,
अब करो मत निठुर खेला,
मिलन का हो मधुर मेला
आज अथरों में तृषा है।
आज वासंती उषा है।

अलि रचो छंद
मधु के मधु ऋतु के सौरभ के,
उल्लास भरे अवनी नभ के,
जडजीवन का हिम पिघल चले
हो स्वर्ण भरा प्रतिचरण मंद
अलि रचो छंद।