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अल्फाज का इक पुल / सरोज सिंह

हमारे दरमियाँ
लम्हा दर लम्हा
अल्फाज़ का इक पुल सा बना जाता है
मैं इस छोर पर कि स ओर हूँ
नहीं जानती
मेरे लिए तो रोज़ सुबह, सूरज
पुल के उस छोर से ही निकलता हैl