भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अल्मिया / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
  
 
आज हालात का ये तंज़े-जिगरसोज़ <ref> सीने को छलनी कर देने वाला उलाहना</ref>तो देख
 
आज हालात का ये तंज़े-जिगरसोज़ <ref> सीने को छलनी कर देने वाला उलाहना</ref>तो देख
तू मिरे शह्र के इक हुजल-ए-ज़रीं<ref>सोने (स्वर्ण) की सेज</ref> में मकीं<ref>निवासी</ref>
+
तू मिरे शह्र के इक हुजल-ए-ज़र्रीं<ref>सोने (स्वर्ण) की सेज</ref> में मकीं<ref>निवासी</ref>
और मैं परदेस में जाँदाद-ए-यक नाने- जवीं<ref>जौ की एक रोटी को तरसता</ref>
+
और मैं परदेस में जाँदाद-ए-यक-नाने-जवीं<ref>जौ की एक रोटी को तरसता</ref>
 
   
 
   
  
 
</poem>
 
</poem>
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}

19:36, 25 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण


अल्मिया<ref>त्रासदी</ref>

किस तमन्ना <ref>कामना,दिल की गहराइयों से</ref>से ये चाहा था कि इक रोज़ तुझे
साथ अपने लिए उस शहर को जाऊँगा जिसे
मुझको छोड़े हुए,भूले हुए इक उम्र<ref>लंबा समय</ref>हुई

हाय वो शहर कि जो मेरा वतन है फिर भी
उसकी मानूस<ref>परिचित</ref>फ़ज़ाओं <ref> हवाओं (वातावरण)</ref>से रहा बेग़ाना<ref>अंजान</ref>
मेरा दिल मेरे ख़्यालों<ref>विचारों</ref>की तरह दीवाना<ref>पागल</ref>


आज हालात का ये तंज़े-जिगरसोज़ <ref> सीने को छलनी कर देने वाला उलाहना</ref>तो देख
तू मिरे शह्र के इक हुजल-ए-ज़र्रीं<ref>सोने (स्वर्ण) की सेज</ref> में मकीं<ref>निवासी</ref>
और मैं परदेस में जाँदाद-ए-यक-नाने-जवीं<ref>जौ की एक रोटी को तरसता</ref>
 

शब्दार्थ
<references/>