Last modified on 23 जनवरी 2015, at 17:27

अवगुन बहुत करे / बुन्देली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अवगुन बहुत करे,
गुरुजी मैंने अवगुन बहुत करे।
जब से पांव धरे धरनी पे,
लाखन जीवन मरे। गुरुजी...
जब से कलम धरी कागज पे,
दस के बीस करे। गुरुजी...
गैल चलत मैंने तिरिया निरखी,
मनसा पाप करे। गुरुजी...
पाप पुण्य की बांधी गठरिया,
सिर पे बोझ धरे। गुरुजी...