भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अवध नगरिया से अइलय बरियतिया हे / मगही

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:01, 17 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatMagahiR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अवध नगरिया से अइलय<ref>आई</ref> बरियतिया हे, परिछन चलु सखिया।
हथिया झुमइते<ref>झूमते</ref> आवे, घोड़वा नचइते<ref>नाचते हुए</ref> सोभइते<ref>शोभते हुए</ref> आवे ना।
सखि रघुबर बरियतिया हे, सोभइते आवे ना॥1॥
बजन बजइते आवइ, कसबी<ref>वेश्या, नर्त्तकी</ref> नचइते हे।
उड़इत<ref>उड़ता हुआ</ref> आवे न चवदिस<ref>चारों दिशा</ref> से निसान<ref>झंडा</ref> हे, उड़इते आवे ना॥2॥
लेहू लेहू डाला<ref>डाला-दौरा</ref> डुली बारी लेहू बतिया हे।
परिछन चलु रघुबर बरियतिया हे, देखन चलु ना॥3॥
ढोल वो नगाड़ा बाजइ, बजइ सहनइया हे।
देखन चलु न सखि रघुबर बरियतिया हे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>