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अवरोध / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

अवरोध

मैं उनके घर
जा न सका वे
मेरे घर तक कभी न आये,
बस इतना अवरोध बीच का
आज तलक हम मिटा न पाये

पूर्ण चन्द्रमा की किरणों सा
उजला उजला मन का दर्पण
सहज समर्पित भावुकता का
स्नेह सना उन्मुक्त समर्पण
मैं भी उनकेा दिखा न पाया
वे भी मुझको दिखा न पाये

गूंगी भाषा के व्यंजन स्वर
अपनेपन में छिपी मधुरता,
उत्कंठा बिह्वल प्राणों की
आकुल आंखो की आतुरता,
मैं भी उनको बता न पाया
वे भी मुझको बता न पायें

नेह चढ़ा परवान दिनों दिन
 पीर हुयी पर्वत सी बढ़कर
अपनी चाहत का संदेशा
दो अक्षर पाती पर लिखकर,
 मैं भी उनको भेज न पाया
 वे भी मुझको भेज न पाये