अवाम आज भी कच्चे घरों में रहते हैं ।
वो मर गए हैं मगर मक़बरों में रहते हैं ।
कमाल ये नहीं शीशे के हैं बदन अपने,
कमाल ये है कि हम पत्थरों में रहते हैं ।
वो ढोल पीट रहा है बहुत तरक्क़ी के,
उसे बताओ कि हम छप्परों में रहते हैं ।
अवाम आज भी कच्चे घरों में रहते हैं ।
वो मर गए हैं मगर मक़बरों में रहते हैं ।
कमाल ये नहीं शीशे के हैं बदन अपने,
कमाल ये है कि हम पत्थरों में रहते हैं ।
वो ढोल पीट रहा है बहुत तरक्क़ी के,
उसे बताओ कि हम छप्परों में रहते हैं ।