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अविश्वासी शिव / सतीश रोहड़ा

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असीं आहियूं अजु/ जा शिव
असां पीतो आहे
अविश्वास जो अमृतु
ऐं थी विया आहियूं
अमर अविश्वासी!
हाणे असीं
विश्वास भरियो जीवनु
जी नथा सघूं
ऐं अविश्वास जो ज़हरु
असां खे मारे नथो सघे।
असीं हाणे अमर आहियूं
अमर अविश्वासी
असां खे हाो जीअणो आहे
रुॻो तड़फिणो आहे, मरिणो नाहे!

(रचना- 97, 2003)