भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अश्रुजल / सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 3 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त' |अनु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो भी रुके हैं नयनों में
आज उसे बह जाने दो
जो भी हो सारी व्यथा
आज उसे कह जाने दो।

जो भी चिंता हो मन की
आज उसे तुम अश्रु बना दो
यादों की तस्वीरों को तुम
अश्रु जल से भिगो दो।

अश्रु के गिरने से पहले
हृदय के टुकड़े हो जाते हैं
पलकों में जो आकर रुकें
उसे ही अश्रु जल कहते हैं।

सुख और दुखों के धागों में
बंधा हुआ है अश्रु मोती
जो भी धागा टूटेगा
गिरेगा वैसा अश्रु मोती।

उसका कोई आकार नहीं
उसका कोई धर्म नहीं
जो बेवक्त आकर टपक पड़ता है
उसे ही अश्रु जल कहते हैं।

आज कमी ना करना तुम
सारे अश्रु बहा दो
अश्रु जल की शीतलता से
आत्मा को शांति दिला दो।