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अश्व एकिलीस के / कंस्तांतिन कवाफ़ी / सुरेश सलिल

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देखा उन्होंने जब कि पेत्रोक्लस खेत रहा
खेत रहा शक्ति और यौवन से आप्लावित वह अपूर्व योद्धा
शोक के सागर में डूब गए अश्व एकीलीस के,
देखा उन्होंने जब / यह क्रूर औत्य मृत्यु का
क्रोधाविष्ट हो उठे वे / दिव्य भाव से भरे ।

पीछे की ओर अपने सिरों को मोड़ कर
झटकार कर अयाल / सुमों से अपने / वे धरती खूँदने लगे
देखा उन्होंने जब जीवनहीन-क्षत-विक्षत शव पेत्रोक्लस का
मात्र हाड़-माँस का ढेर बना / अरक्षित और निष्प्राण / भूमि पर पड़ा हुआ
देखा उन्होंने जब / कि वह वीरश्रेष्ठ
जीवन पथ छोड़ महाशून्य में विलीन हुआ, तो
शोक के महासिन्धु में / डूब गए अश्व एकालीस के ।

उन दिव्य अश्वों के नेत्रों में अश्रु देख
क्षोभ से भर उठे देवराज जीअस :
‘उचित नहीं था करना वैसा अविवेकी औत्य
मुझे, पीलिअस के विवाह के अवसर पर,’

एकीलीस : महान यूनानी योद्धा। पिता : पीलिअस, माँ : थेटिस। पीलिअस के विवाह के अवसर पर देवराज जीअस ने उसे अपने दो दिव्य अश्व उपहारस्वरूप भेंट किए थे। एकीलीस का शरीर अभेद्य था —  सिर्फ़ पैरों की एड़ियाँ ही वह मर्मस्थल थीं जहाँ शस्त्र का प्रभाव हो सकता था [महाभारत के दुर्योधन की तरह] । त्रोय के युद्ध में यद्यपि एकीलीस ने शस्त्र न उठाने की शपथ ली थी, किन्तु अपने मित्र और परम
अश्वों को लक्ष्य कर बोले देवेन्द्र ज़ीअस :

‘उचित नहीं था। तुम्हें उपहार स्वरूप दिया जाना ।
ओ अप्रिय अश्व-युगल, यह सब क्या किया तुमने
जाकर वहाँ / दयनीय नियति के पुतले मानवों के मध्य ?

तुम हो अमर्त्य / तुम हो वार्धक्य से परे
तब भी कर सकीं तुम्हें क्षणभंगुर महाआपदाएँ शोक सन्तप्त !
नश्वर मानवों ने लपेट लिया तुम्हें भी — अपने दुःख-क्लेश में !!’

किन्तु यह मृत्यु का निरन्तरित सँकट था
कि वे परम प्रतापी अश्व / अश्रुओं से नहा गए ।

[1897]

योद्धा पेत्रोक्लस के वीरगति पाने के समाचार से वह इतना विचलित हुआ कि उसे अपनी शपथ तोड़नी पड़ी । वीरवेश धारण कर वह युद्ध-क्षेत्र में उतरा और हेक्टर का वध करके उसने अपने मित्र को श्रद्धाँजलि दी । बाद में, अपोलो द्वारा अभिमन्त्रित बाण से त्रोय के राजकुमार पारिस [प्रायेम का पुत्र और हेक्टर का अनुज, जिसके जन्म के समय भविष्यदृष्टा इसेकस ने कहा कि यही बालक त्रोय के विनाश का कारण बनेगा] के हाथों वह ख़ुद मारा गया। एकीलीस त्रोय का पतन अपनी आँखों नहीं देख पाया, किन्तु अन्तिम क्षण तक उसे विश्वास था कि इस युद्ध में विजय यूनान की होगी ।

पेत्रोक्लसः आयु में एकीलीस से ज्येष्ठ, किन्तु उसका अभिन्न मित्र । हेक्टर के हाथों जब यूनान की सेना परास्त हो रही थी, तो पेत्रोक्लस से देखा नहीं गया । अपने मित्र से अनुमति लेकर वह युद्धक्षेत्र की दिशा में सन्नद्ध हुआ । एकीलीस ने अपना सारा सैन्य बल ही नहीं, अपना अभेय कवच भी उसे प्रदान किया ।
 
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल