Last modified on 30 दिसम्बर 2018, at 00:26

असफल हों या सफल हों, पर आस मर न जाये / डी. एम. मिश्र

असफल हों या सफल हों, पर आस मर न जाये
बेशक हों तृप्त लेकिन यह प्यास मर न जाये

लाखों हैं फूल खिलते, लाखों हैं रोज़ झरते
यह चक्र है नियति का मधुमास मर न जाये

फ़ितरत है आदमी की छूना बुलंदियों को
इतना ख़याल रखना एहसास मर न जाये

दुनिया का यह चलन है, दुनिया चलेगी यूँ ही
धोखे हज़ार हों पर , विश्वास मर न जाये

क्या टूटने के डर से बनते नहीं खिलौने
हम तों मरें हमारा इतिहास मर न जाये