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असबाब से जहाँ के कुछ अब पास गो नहीं / सौदा

असबाब से जहाँ के कुछ अब पास गो <ref>हालाँकि</ref> नहीं
ये फ़िक्र तो नहीं कि ये है और वो नहीं

गो मुंतज़र<ref>प्रतीक्षक </ref> दुआ का हमारे है अब क़ुबूल
दस्तो-दहन<ref>हाथ और मुँह</ref> पसारिए, अपनी ये ख़ू<ref>आदत</ref> नहीं

बाँधा हम इस चमन में अगर आशियाँ तो क्या
है गुल में आबो-रंग, वफ़ा की तो बू नहीं

आँखें तो ऐसी ख़ल्क न होईं<ref>नहीं रची गयीं</ref> न होयेंगी
पर चाहिए कि उनमें मुरव्वत हो, सो नहीं

सरगोशी<ref>फुसफुसाहट</ref> पर मिरी तू बर-आशुफ़्ता<ref> नाराज़ </ref>क्यों हुआ
मैं दर्दे-दिल कहा है न, कुछ और तो नहीं

जो चाहें यार हाल से दें मेरे इश्तहार
मैं दर्दे-दिल कहा है न, कुछ और तो नहीं

'सौदा' न करते काश तिरा वस्फ़<ref>गुणगान</ref> पेशे-यार<ref>प्रियतम के सामने</ref>
अब हमको उससे आँख मिलाने का रू<ref> हौसला</ref> नहीं

शब्दार्थ
<references/>