भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असर करे न करे सुन तो ले मेरी फ़रियाद / इक़बाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:05, 25 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अल्लामा इक़बाल }} {{KKCatGhazal}} <poem> असर करे ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

असर करे न करे सुन तो ले मेरी फ़रियाद
नहीं है दाद का तालिब ये बंद-ए-आज़ाद

ये मुश्त-ए-ख़ाक ये सरसर ये वुसअत-ए-अफ़लाक
करम है या के सितम तेरी लज़्ज़त-ए-ईजाद

ठहर सका न हवा-ए-चमन में ख़ेम-ए-गुल
यही है फ़स्ल-ए-बहारी यही है बाद-ए-मुराद

क़ुसूर-वार ग़रीब-उद-दयार हूँ लेकिन
तेरा ख़राबा फ़रिश्ते न कर सके आबाद

मेरी जफ़ा-तलबी को दुआएँ देता है
वो दश्त-ए-सादा वो तेरा जहान-ए-बे-बुनियाद

ख़तर-पसंद तबीअत को साज़-गार नहीं
वो गुलसिताँ के जहाँ घात में न हो सय्याद

मक़ाम-ए-शौक़ तेरे क़ुदसियों के बस का नहीं
उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद