Last modified on 19 अक्टूबर 2007, at 02:49

असह है, आह ! / महेन्द्र भटनागर

असह है, आह!
प्रीति का निर्वाह —

छ्ल-छदम मय,

मिथ्या … भुलावा
झूठ … मायाजाल!

तब यह ज़िंदगी —
गदली - कुरूपा अति भयावह

धधकता दाह!