Last modified on 15 जुलाई 2018, at 02:03

अस्तित्व / मलय रायचौधुरी / दिवाकर ए० पी० पाल

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: मलय रायचौधुरी  » अस्तित्व / मलय रायचौधुरी

सन्न — आधी रात को दरवाज़े पर दस्तक हुई।
बदलना है तुम्हें, एक विचाराधीन क़ैदी को।
क्या मैं कमीज़ पहन लूँ? कुछ कौर खा लूँ?
या छत के रास्ते निकल जाऊँ?
टूटते हैं दरवाज़े के पल्ले, और झड़ती हैं पलस्तर की चिपड़ियाँ;
नक़ाबपोश आते हैं अन्दर और सवालों की झड़ियाँ —
"नाम क्या है, उस भैंगे का
कहाँ छुपा है वो?
जल्दी बताओ हमें, वर्ना हमारे साथ आओ!"
भयाक्रान्त गले से कहता हूँ मैं — "मालिक,
कल सूर्योदय के वक़्त,
उसे भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला"।
1985

मूल बंगला से अनुवाद : दिवाकर ए० पी० पाल