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अस्थिर है छवि तुम्हारी / ओसिप मंदेलश्ताम

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अस्थिर है

छवि तुम्हारी

और बेहद यातनादायक


कोहरे में मैं छू नहीं पाया उसे

पर मुँह से निकला अचानक-- ऎ ख़ुदा!

हालाँकि सोचा नहीं था मैंने

कि ऎसा कहूंगा


ईश्वर का नाम

जैसे मेरे हृदय से निकल कर उड़ा

एक बड़ा पक्षी है कोई

जिसके सामने लहरा रहा है

घना कोहरा

और पीछे है खाली पिंजरा

(रचनाकाल : 1912)