Last modified on 23 जून 2017, at 11:52

अस्वीकार में उठलोॅ हाथ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

ई जानतें हुअें भी
कि तोरा सें जे सहमत नै छै
आरो, जें जें तोरा
स्वीकार नै करतै
तोरा समर्थन में हाथ नै उठैतेॅ
ओकरा मारी देलोॅ जाय छै

तोरोॅ हिंसा सें भरलोॅ बर्बरता
ओकरा निगली जाय छै
तोरा अस्तित्व केॅ नकारैवाला
क्षत-विक्षत लाशोॅ में
तब्दील होय जाय छै

ई जानी केॅ भी
वें हाथ नै उठैलकै
आरो आवेॅ वें
इत्मीनान सें बैठी केॅ
खाना खाय रहलोॅ छै

ई सोचतें हुअें कि.......
हमरोॅ ई संघर्श बेरथ नै जैतै
हम्में नै,
हमरोॅ ई संघर्श
हमेशा याद करलोॅ जैतै
रसता बनी केॅ
आवै वाला पीढ़ी केॅ
आगू तेॅ जरूरे बढ़ैतेॅ ।