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अहंकार यह शीश महल सा / चन्द्रगत भारती

भीगी पलकों से मत देखो
दर्पन झूठा कह लायेगा।

अपना अन्तर्मन तुम झाँको
कमी नजर आ जायेगी !
तुम यदि इसको दूर करो तो
मस्ती सी छा जायेगी !
वर्षो से जो जमा है दिल मे
पलक झपकते बह जायेगा।

अनजाने की गलती अक्सर
कहाँ दिखाई पड़ती है !
अपनी कमी छिपा कर दुनिया
सबसे खूब अकड़ती है !
अहंकार यह शीश महल सा
पल में इक दिन ढह जायेगा।

करो तमन्ना फूलों की तो
शूलों की सौगात मिले!
तपिस चाहिए यदि सांसो की
उमस भरी फिर रात मिले !
किन्तु रहो ईमान सहेजे
यही जगत में रह जायेगा