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अहसास का सुलगता क्षण / सरोज कुमार

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फटाके ने कहा-
मैं सन्नाटे के खिलाफ़
एक बगावत हूँ,
धमाका हूँ!
मौन के मरुस्थल में
आवाज का ठहाका हूँ!

फुलझड़ी चहकी-
मैं एक टहनी हूँ
आग के चमकीले फूलों की,
मैं हूँ एक पैंग
चिंगारियों के झूलों कि!

राकेट बाण गरजा-
मैं आकाश को
तबले- सा बजा दूँगा,
इंद्रधनुष की पंखुरियों में बिखरकर
अँधियार को सजा दूँगा!

अनार से अब रहा नहीं गया, बोला-
रोशनी का फव्वारा हूँ
उफनता मजे में मैं,
गुलदस्ता हूँ,
उजाले का
अमावस के खेमे में!

फटाके, फुलझड़ी राकेट और अनार
सभी ने कहा-
हमने जो किया
उसका रहस्य है
पर्दे के पीछे, हमे जो मिला था,
-वह दिया!

वह दिया!
प्रेरणा का एक सबल स्पर्श,
उजाले का एक काँपता हुआ चुम्बन,
आत्मविश्वास की एक थिरकती हुई छुअन,
मनोबल की प्रदीपित कांति,
अपने अहसास का
एक सुलगता हुआ क्षण!