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अहसास / शकुन्त माथुर

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मैं अधिक सावधान होकर
देख रही थी जादूगर का
तमाशा
उसके हर छोटे से छोटे खेल
की करामात
सारी भीड़ थी आत्मविभोर
मैं थी निराश
हर क्षण अपने छोटे होने का अहसास ।

मैं घबरा गई
भीतर की भाग-दौड़
गुफ़ाओं मेम बाढ़ आ गई
हँसते-किलकते बच्चे की
तेज़ी से नाचती
फिर फिर-गिर जाती
फिरकिनी को
परन्तु बच्चों की-सी कौतुहलता
और किलक
अब मुझमें नहीं है
तर्क की इतनी अधिक शीतलता
अपने भभकते अंगारों पर
फिर से आ बैठी हूँ
इस सभ्य मौसम में ।

और दूर पर देख रही हूँ
ताक़तवर बैल ने अपनी नकेल
गाड़ीवान को दे दी है
और वह जिधर चाहे मोड़ता है अपनी
मनचाही राहों पर
जल्दी से जल्दी गाँठ बनाने की
आतुरता मेम
छू जाता है पहला सिरा--
अपनी आती बेहूदा हँसी को
रोक लिया
मेरा यही ख़याल है
हम सब आदमखोर हैं
किसी न किसी रूप में ।