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अहिंसा का दीप पुंज / बाल गंगाधर 'बागी'

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आसान नहीं है आसमान को, मुट्ठी मंे कभी भर लेना
संभव नहीं है हमारी अस्मिता पर हुकुमत कर लेना
व्यापक अनंत छोर की जननी, दुनिया इससे हारी है
आज अपनी धरा को, नाम लेने की हमारी बारी है

कितनी नीवों में दफन आज, स्वर्णिम इतिहास हमारा है
कितनी राखों में पोशीदा, अध्यात्म का पन्ना सारा है
विश्व गौतम नगरी में, नालन्दा तक्षशिला कायम
स्थापित अहिंसा पंचशील, अष्टांगिक मार्ग सदा पावन

नगर मगध, कौशल, कौशाम्बी, कपिलवस्तु, वन्तीजहाँ
सारनाथ व बोधगया, संसार में मध्यम मार्ग दिया
प्रथम पाठशाला गौतम की, मनुष्यता का मान दिया
करुणा मैत्री दया क्षमा, समता का अमिट प्रकाश दिया

शीतल मधुर सम प्रेमभाव में, हृदय का दृष्टांत दिया
उठो जाति की खाई से हिंसा की ज्वाला बुझा दिया
सम्यक दृष्टि नहीं जिसमें, व्यक्ति समाज कल्याण न हो
छुआछूत और ऊंच-नीच का, कटुता जान बेजान किया

जमींदारी या साहूकारी, डंकाचोरी हत्या अपमान
निर्मूल अंधभक्ति न हो, यथार्थ रहे वैज्ञानिक सार
दुर्लभ समय की धारा में, हर प्राणी ध्वज फहराया
‘बाग़ी’ समय बगावत में, कभी न सोच को झुठलाया