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अहिल्याबाई / सरोज कुमार

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जैसे वह अभी भी
राज कर रही है
वह हमारी रानी है
मालवा की सच्ची
अनोखी कहानी है!

उसकी ध्वजा में धर्म, और
संकल्पों में कर्म था!
उसके सिंहासन के
खूँखार शेर
प्रजा का रक्षण करते थे
भक्षण नहीं!

महेश्वर महाईश उसका
आराध्य था
अमन, चैन, खुशहाली
एकमात्र साध्य था!
पति की अन्य विधवाओं जैसी
वह भी हो गई होती सती,
विवेकवान श्वसुर के
निर्देशन में बच गई,
और होलकरों का अनसोचा
इतिहास रच गई!

पैरों की जुती वाले
औरत के इतिहास में
उसके पैरों की धूल
लोक, राजवंश में
चंदन बन महकी!
पिंजरेवाली चिड़िया
वन-उपवन चहकी!

वह राजनीतिज्ञ नहीं
नीतिज्ञ थी!
वह बुद्धिजीवी नहीं
बुद्धिमान थी!
वह अहिल्या थी-
पर अभिशापित नहीं!
सिंहासन धरा रहा-
उस पर बैठी नहीं!
ईश्वर को अर्पित कर
हुकूमत तमाम
प्रसादवत्त थामे रही
हाथ में लगाम!
सेना ले आया था
आक्रामक राघोबा,
स्त्री से युद्ध
की पहेली सुन
उसने कर ली तौबा!
महादजी को फटकारा
हिंसक, कबीलों को
ललकारा!
अस्त्र-शस्त्र सज्जित की
स्त्रियों की सेना!
गिद्धों से बलशाली
टिटहरी और मैना!

दान, धर्म, दया, प्रेम
सेवा की देवी!
मंदिर मस्जिद दरगाह
घाटों की सेवी!
सरयू, गंगा, शिप्रा
नर्मदा की मेखला!
चारधाम ज्योति पिंड
तीर्थों की श्रंखला !
नीति,न्याय, मैत्री
सुख, शांति, की पुजारी!
विट्ठल की तुलसीमाल
काशी बलिहारी!
सर्व धर्म सम्मानित,
सर्वकाल मोही!
चरणों में खलनायक
पापी विद्रोही!
मालव की महारानी
मुक्तहस्त दानी,
जनगणमन की मलिका
जनपद कल्याणी!