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अहि पार गँगा बहै ओहि जमुना, बीचे दियर परि गेल हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अहि<ref>इस पार</ref> पार गँगा बहै<ref>बहती है</ref> ओहि<ref>उस पार</ref> जमुना, बीचे दियर<ref>दियारा; नदी द्वारा छोड़ी हुई जमीन</ref> परि गेल हे।
ओहि दियर पर जोगी एक आयल, जटा देल उरमाय हे॥1॥
घर सेॅ बाहर भेली बेटी दुलारी बेटी, परि गल जोगी मुख डीठ<ref>दृष्टि</ref> हे।
हाली हाली<ref>जल्दी-जल्दी</ref> आहो जोगी बँसबा कटाब हो, झटपट देहो न ओहार हे॥2॥
एक कोस गेल धिआ दुइ गोस गेल, तीजे<ref>तीसरे</ref> कोस बाबा के पोखरि हे।
घोड़बा चढ़ल आबै भैया सहोदर, परिगेल जोगी मुख डीठ हे॥3॥
अहि खड़ग मारब जोगिया तपसिया, बहिनी के आनब छोड़ाय हे।
डलिया सेॅ बोलै बहिनी दुलारी बहिनी, सुनु भैया अरज हमार हे॥4॥
तोहरा के लिखल भैया बाबा के संपतिया, हमरा के जोगिया भिखारि रे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>