Last modified on 4 जुलाई 2014, at 06:29

अेक सौ छत्तीस / प्रमोद कुमार शर्मा

जाणै कुण
कुण जाण सकै
थारै अक्षर रूप नैं
थारी छांव अर धूप नैं

सै थारी ही भाखा है
थां बिन कुण जणा सकै
क्यूंकै :
अक्षर ही अक्षर बणा सकै।