भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँखें खोलो / उषा यादव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:37, 22 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा यादव |अनुवादक= |संग्रह=51 इक्का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पढ़ी किताबें तुमने इतनी,
पर सीखा है क्या, बोलो?
मुँह से कुछ कहने से पहले,
हृदय तराजू पर तोलो।

करवी बात न मुँह से निकले,
वाणी में मिसरी घोलो।
जालना कूढ़ना बुरी बात है,
मैल सभी मन का धोलो।

हँसता सूरज, खिलती कलियाँ,
तुम भी चहको, खुश हो लो।
दुनिया ही परिवार दिखेगी,
बस, मन की आँखे खोलो।