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आँखें देखकर / गोरख पाण्डेय
Kavita Kosh से
ये आँखें हैं तुम्हारी
तकलीफ़ का उमड़ता हुआ समुन्दर
इस दुनिया को
जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिये.