भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँखों की कोर का बडा हिस्सा तरल मिला / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:33, 20 अप्रैल 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँखों की कोर का बडा हिस्सा तरल मिला,
रोने के बाद भी, मेरी आँखों में जल मिला।

उपयोग के लिए उन्हें झुग्गी भी चाहिए,
झुग्गी के आसपास ही उनका महल मिला।

आश्वस्त हो गए थे वो सपने को देख कर,
सपने से ठीक उल्टा मगर स्वप्न-फल मिला।

इक्कीसवीं सदी में ये लगता नहीं अजीब,
नायक की भूमिका में लगातार खल मिला।

पूछा गया था प्रश्न पहेली की शक्ल म,
लेकिन, कठिन सवाल का उत्तर सरल मिला।

उसको भी कैद कर न सकी कैमरे की आँख,
जीवन में चैन का जो हमें एक पल मिला।

ऐसे भी दृश्य देखने पडते हैं आजकल,
कीचड की कालिमा में नहाता कमल मिला।