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आँखों की बारिशों से मेरा वास्ता पड़ा / आलोक यादव

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आँखों की बारिशों से मेरा वास्ता पड़ा
जब भीगने लगा तो मुझे लौटना पड़ा

क्यों मैं दिशा बदल न सका अपनी राह की
क्यों मेरे रास्ते में तेरा रास्ता पड़ा

दिल का छुपाऊँ दर्द कि तुझको सुनाऊँ मैं
ये प्रश्न एक बोझ सा सीने पे आ पड़ा

खाई तो थी क़सम कि न आऊँगा फिर कभी
लेकिन तेरी सदा पे मुझे लौटना पड़ा

किस - किस तरह से याद तुम्हारी सताए है
दिल जब मचल उठा तो मुझे सोचना पड़ा

वाइज़ सफ़र तो मेरा भी था रूह की तरफ़
पर क्या करूँ कि राह में ये जिस्म आ पड़ा

अच्छा हुआ कि छलका नहीं उसके सामने
‘आलोक’ था जो नीर नयन में भरा पड़ा