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"आँखों को मेरी आज भी तेरी तलाश है / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

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चेहरे पे एतमाद के दहका पलाश है।
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जिसको भी दे शिकस्त अँधेरा गुनाह का,
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सोचूँ मैं,वो सवाब का कैसा प्रकाश है?
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दस्ते-फ़रेब-ओ-मक्र की हल्की-सी चोट से,
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दिल आईने की तरह हुआ पाश-पाश है।
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कोई भी क़हक़हा न उछाले फ़ज़ाओं में,
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इस वक़्त ‘नूर’ मन से ज़रा-सा निराश है।
 
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20:13, 31 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण

आँखों को मेरी आज भी तेरी तलाश है।
नाकामियों की दिल पे भले ही ख़राश है।

आने लगा यक़ीन कि वो लौट आएगा,
चेहरे पे एतमाद के दहका पलाश है।

जिसको भी दे शिकस्त अँधेरा गुनाह का,
सोचूँ मैं,वो सवाब का कैसा प्रकाश है?

दस्ते-फ़रेब-ओ-मक्र की हल्की-सी चोट से,
दिल आईने की तरह हुआ पाश-पाश है।

कोई भी क़हक़हा न उछाले फ़ज़ाओं में,
इस वक़्त ‘नूर’ मन से ज़रा-सा निराश है।