भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आँखों में ख़ुशनुमा कई मंज़र लिए हुए / बसंत देशमुख" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बसंत देशमुख |संग्रह= }} <Poem> आँखों में ख़ुशनुमा क...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
− | आँखों में ख़ुशनुमा कई मंज़र लिए हुए | + | आँखों में ख़ुशनुमा कई मंज़र लिए हुए |
− | कैसे हैं लोग गाँव से शहर गए हुए | + | कैसे हैं लोग गाँव से शहर गए हुए |
− | सीने में लिए पर्वतो से हौसले बुलंद | + | सीने में लिए पर्वतो से हौसले बुलंद |
− | गहराइयों में दिल की समुन्दर लिए हुए | + | गहराइयों में दिल की समुन्दर लिए हुए |
− | बदहाल बस्तियों के हालात पूछने | + | बदहाल बस्तियों के हालात पूछने |
− | आया है इक तूफ़ान बवंडर लिए हुए | + | आया है इक तूफ़ान बवंडर लिए हुए |
− | बिल्लियों के बीच न बँट पाए रोटियाँ | + | बिल्लियों के बीच न बँट पाए रोटियाँ |
− | ऐसे ही फैसले सभी बन्दर किए हुए | + | ऐसे ही फैसले सभी बन्दर किए हुए |
− | इस राह की तक़दीर में लिखी है तबाही | + | इस राह की तक़दीर में लिखी है तबाही |
− | इस राह में रहबर खड़े खंजर लिए हुए | + | इस राह में रहबर खड़े खंजर लिए हुए |
</poem> | </poem> |
19:58, 20 नवम्बर 2008 का अवतरण
आँखों में ख़ुशनुमा कई मंज़र लिए हुए
कैसे हैं लोग गाँव से शहर गए हुए
सीने में लिए पर्वतो से हौसले बुलंद
गहराइयों में दिल की समुन्दर लिए हुए
बदहाल बस्तियों के हालात पूछने
आया है इक तूफ़ान बवंडर लिए हुए
बिल्लियों के बीच न बँट पाए रोटियाँ
ऐसे ही फैसले सभी बन्दर किए हुए
इस राह की तक़दीर में लिखी है तबाही
इस राह में रहबर खड़े खंजर लिए हुए