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आँखों में ख़ुशनुमा कई मंज़र लिए हुए / बसंत देशमुख

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आँखों में ख़ुशनुमा कई मंज़र लिए हुए

कैसे हैं लोग गाँव से शहर गए हुए


सीने में लिए पर्वतो से हौसले बुलंद

गहराइयों में दिल की समुन्दर लिए हुए


बदहाल बस्तियों के हालात पूछने

आया है इक तूफ़ान बवंडर लिए हुए


बिल्लियों के बीच न बँट पाए रोटियाँ

ऐसे ही फैसले सभी बन्दर किए हुए


इस राह की तक़दीर में लिखी है तबाही

इस राह में रहबर खड़े खंजर लिए हुए