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आँखों में जितने सपने हैं / अभिषेक कुमार अम्बर

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आँखों में जितने सपने हैं
उनमें से अपने कितने हैं।

अमृत पीकर खुश मत हो तू,
विष के प्याले भी चखने हैं।

इनमें भी तुम बैर करोगे,
जीवन के दिन ही कितने हैं।

फ़ाक़े में मालूम पड़ेगा,
कौन पराये और अपने हैं।

इस मिटटी में प्यार के ‘अम्बर’
लाखों अफ़साने दफ़्ने हैं।