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आँखों में भर के प्यार का पानी ग़ज़ल कही / कुँवर बेचैन

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आँखों में भर के प्यार का पानी ग़ज़ल कही
हमने नये सिरे से पुरानी ग़ज़ल कही।

लिक्खा जो देखा उसकी हथेली पे अपना नाम
हमने हथेली चूम ली, यानी ग़ज़ल कही।

कितना कहा खुलेंगे ग़ज़ल कह के सारे राज़
पर दिल ने मेरी एक न मानी, ग़ज़ल कही।

होठों ने पहनकर नये लफ़्ज़ों के नव बसन
आँखों ने आंसुओं की जुबानी ग़ज़ल कही।

लफ़्ज़ों में है कहीं पे धुआँ और कहीं पे आग
क्या तुमने सुन के मेरी कहानी, ग़ज़ल कही।

याद आ रही है धान के खेतों की वो ग़ज़ल
जिसने पहन के चूनरी धानी, ग़ज़ल कही।

ग़ज़लों में रख के लफ़्ज़ों की प्यारी अंगूठियां
फिर कहके ये हैं मेरी निशानी, ग़ज़ल कही।

जब अपनी चांदनी पे ग़ज़ल कह रहा था चाँद
मैंने भी तुझ पे रूप की रानी ग़ज़ल कही।