Last modified on 4 सितम्बर 2011, at 16:28

आँखों से दूर, सुबह के तारे चले गए / शकील बदायूँनी

आंखों से दूर सुब्ह के तारे चले गए: नींद आ गई तो ग़म के नज़ारे चले गए:

दिल था किसी की याद में मसरूफ़ और हम: शीशे में ज़िन्दगी को उतारे चले गए:

अल्लाह रे बेखुदी कि हम उनके रू-ब-रू: बे-अख़्तियार उनको पुकारे चले गए:

मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी का जीतना: कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए:

नाकामी-ए-हयात का करते भी क्या गिला: दो दिन गुज़ारना थे, गुज़ारे चले गए:

जल्वे कहां जो ज़ौके़-तमाशा नहीं ‘शकील’: नज़रें चली गईं तो नज़ारे चले गए