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आँख अब रउरा लगा के का करब / पी.चंद्रविनोद

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आँख अब रउरा लगा के का करब ?
आन का घर जो हमेसे बा परब !
धुंध से भर जाय जो आपन गली
रोशनी के जोर के कइसे छली
होड़ में जी, जान देके का बरब ?
रेत में कबहूँ चली ना ई तरी
ऊँट से परतर बड़ा भारी पड़ी
साँच जइसन झूठ लेके का फरब ?
आइना पर अब भरोसा के करी
रूप लेके दरब से घर ना भरी
सामने बा काँट तबहूँ का चरब ?
रास्ता आपन बनावल बा सही
डाह से ना, चाह से सोना लही
सेच अइसन पोस रउरा का मरब ?