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"आँख भर आई सुरों की / राजेश शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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आज देना ही पड़ेंगे, आँधियों को भी जवाब,
 
आज देना ही पड़ेंगे, आँधियों को भी जवाब,
फिर सवालों पर उतर आए किताबों के गुलाब.
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फिर सवालों पर,उतर आए,किताबों के गुलाब.
जिन गुलाबों से लिपट कर खूब रोई रातरानी.
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जिन गुलाबों से लिपट कर,खूब रोई रातरानी.
 
   
 
   
युग हुए पदचिन्ह धोए फासलों के दर्द ने,
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युग हुए पदचिन्ह धोए,फासलों के दर्द ने,
 
मील के पत्थर भी डूबे,काफ़िलों की गर्द में,
 
मील के पत्थर भी डूबे,काफ़िलों की गर्द में,
 
और चला है एक पागल,ढूंढने खोई निशानी.
 
और चला है एक पागल,ढूंढने खोई निशानी.
 
   
 
   
 
बस धरे रह जाएँगे तब, बांध के छल-छंद सारे,
 
बस धरे रह जाएँगे तब, बांध के छल-छंद सारे,
ये नदी बह जाएगी फिर तोड़ कर तटबंध सारे,
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ये नदी बह जाएगी फिर,तोड़ कर तटबंध सारे,
 
जब घटाओं से गिरेगा,टूटकर बरखा का पानी.
 
जब घटाओं से गिरेगा,टूटकर बरखा का पानी.
 
   
 
   
 
आँख में जब तक है सागर,और अधर पर प्यास है,
 
आँख में जब तक है सागर,और अधर पर प्यास है,
साँस में सदियों से बिछुड़े गीत का आभास है,
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साँस में सदियों से बिछुड़े,गीत का आभास है,
 
देखना तब तक रहेगी, बांसुरी की जिंदगानी .
 
देखना तब तक रहेगी, बांसुरी की जिंदगानी .
  
 
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17:52, 9 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण


आँख भर आई सुरों की,याद आई है कहानी ,
आज फिर सोने न देगा,रेत को नदिया का पानी.
 
आज देना ही पड़ेंगे, आँधियों को भी जवाब,
फिर सवालों पर,उतर आए,किताबों के गुलाब.
जिन गुलाबों से लिपट कर,खूब रोई रातरानी.
 
युग हुए पदचिन्ह धोए,फासलों के दर्द ने,
मील के पत्थर भी डूबे,काफ़िलों की गर्द में,
और चला है एक पागल,ढूंढने खोई निशानी.
 
बस धरे रह जाएँगे तब, बांध के छल-छंद सारे,
ये नदी बह जाएगी फिर,तोड़ कर तटबंध सारे,
जब घटाओं से गिरेगा,टूटकर बरखा का पानी.
 
आँख में जब तक है सागर,और अधर पर प्यास है,
साँस में सदियों से बिछुड़े,गीत का आभास है,
देखना तब तक रहेगी, बांसुरी की जिंदगानी .