Last modified on 10 जनवरी 2015, at 09:00

आँख ये धन्य है / नरेन्द्र मोदी / अंजना संधीर

आँख ये धन्य है (कविता संग्रह)

सर झुकाने की बारी आये
ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा
पर्वत की तरह अचल रहूँ
व नदी के बहाव सा निर्मल
........
शृंगारित शब्द नहीं मेरे
नाभि से प्रकटी वाणी हूँ
...............

मेरे एक एक कर्म के पीछे
ईश्वर का हो आशीर्वाद
............