Last modified on 13 सितम्बर 2011, at 18:41

आँख से आँख मिलाता है कोई / शकील बँदायूनी

आँख से आँख मिलाता है कोई
दिल को खीँचे लिये जाता है कोई

वा-ए-हैरत के भरी महफ़िल में
मुझ को तन्हा नज़र आता है कोई

चाहिये ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल
हौसला किस का बढ़ाता है कोई

सब करिश्मात-ए-तसव्वुर है "शकील"
वरना आता है न जाता है कोई