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आँख / अशोक शुभदर्शी

आँख मोरचा पर छै

संभव नै छै
आँखोॅ के बिना
खेलना कोय खेल
सभ्भे खेल आँखे के छेकै

युद्ध तेॅ जितले नै जावै सकै छै
आँखी केरोॅ अभाव में

कल जितलॅे छेलै
जोंन आँखी ने युद्ध
ऊ आय पुरानोॅ पड़ी गेलोॅ छै

अपना सनी केॅ
आबेॅ करना छै
फेरु सें ईजाद
नया आंख के
जीतै वास्तंे
युद्ध।