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आँगन सबको प्यारा, कैसे / हरि फ़ैज़ाबादी

आँगन सबको प्यारा, कैसे
घर का हो बँटवारा कैसे

दीपक छोड़ो, सोचो होगा
चूल्हे में उजियारा कैसे

नालायक़ ही, है तो बेटा
बेटी बने सहारा कैसे

बदन गर्म है बेहद लेकिन
घर बैठे मछुआरा कैसे

सबसे जीता, पर अपनों से
देश हमारा हारा कैसे

मुझसे नहीं स्वयं से पूछो
मैं हो गया तुम्हारा कैसे

रोज़ बदलता है घर फिर भी
ख़ुश रहता बंजारा कैसे