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आँच मिले / शकुन्त माथुर

कहीं से आग मिले
इस बरफ़ीली जगह में
कहीं से आँच मिले
इस ठंडे शहर में
कहीं से राग उठे
इस वीराने में
कहीं शहनाई बजे
इस मनहूस मरघटी ज़माने में
कहीं आम का पेड़ बौराए
सुनसान को तोड़े कोयल
हवा तेज़ और तेज़ चले
गले लगे
शरमाए

दोपहरी भन्नाती है
धूप गरम और और
गरमाती है
रुकी हूँ अभी भी
किसी गंध आँच के लिए
किसी एक शाम के लिए
लिए गए किसी एक नाम के लिए।