आँधरे को प्रतिबिम्ब कहा बहिरे को कहा सुर राग की तानै ।
आदी को स्वाद कहा कपि को पर नीच कहा उपकारहि मानै ।
भेड़ कहा लै करै बुकवा हरवाह जवाहिर का पहिचानै ।
जानै कहा हिंञरा रति की गति आखर की गति काखर जानै ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।