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आँसुओं को छुपा लें / डी. एम. मिश्र

आँसुओं को छुपा लें नयन में मगर
गीत मेरे छुपा भेद हैं खोलते।

मसि लिए अश्रु की गाल के पत्र पर
नयन संदेश लिखते रहे उम्र भर,
प्यार तुम से किया है बड़ा खेद है
कल तलक था प्रगट अब बना भेद है,

तोड़ सारी गये तुम मिलन की प्रथा
अब कहाँ वह अधर से अमृत घोलते।

तुम छुपे सिंधु में हो लहर की तरह
तुम घुले प्राण में हो रुधिर की तरह,
तुम दिखोगे नहीं दृष्टि से इस तरह
अब तुम्हीं हो हमारे हृदय की जगह,

शब्द घायल, विकल छंद स्वर में लिए
नाम केवल तुम्हारा अधर बोलते।

मीत कोई बने, प्रीत तुम से मगर
सुख किसी से मिले शाँति तुम से मगर,
गीत है यह तुम्हारे भजन के लिए
है नयन जल विकल आचमन के लिए,

कामना से चले, वेदना के नगर
वन्दना तक रहे बन व्रती खेाजते।