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आँसु / विमला तुम्खेवा

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फेरि म एकपटक
नमीठो गरी दुखेँ

लुथ्रुक्क भएँ आँसुका धाराहरुमा
दुख्नु आफैमा नमीठो रहेछ
तर
मैले बुझ्न सकिनँ
आँसुका भाषाहरुलाई
न बुझ्न सकेँ आफ्नै दुखिरहेको मुटुलाई ।